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क्या करूं ये इन्टरनेट की आदत ही ऐसी होती है….. एक बार अगर किसी को लग गई तो फिर आसानी से पीछा नहीं छोड़ती हैं…. और अगर आप किसी बड़े संस्थान में पढाई कर रहे हो, जहाँ चौबीसों घंटे नेट फ्री है और वहां आप को ये लत लग जाये, तो समझिये हो गई आपकी डिग्री…. हम भी ऐसे ही एक नामी संस्थान में पढाई कर रहे हैं …. लोगों का कहना है कि कुछ ही दिनों में हमारे नाम के आगे डॉक्टर जुड़ जायेगा…. लोग ऐसा क्यों कहते हैं, ये आज ही हमें समझ आया…. असल में हम अपने हॉस्टल के कमरे से बहुत कम बाहर निकलते हैं …. या यूँ कहे कि नेट की लत हमें बाहर निकलने नहीं देती तो सही होगा….. और लोगों को भ्रम होता है कि हम कमरे में दिन-रात रिसर्च कर रहे हैं… अब हम उन्हें कैसे समझाएं कि ये इन्टरनेट की लत हमारा दामन ही नहीं छोड़ती है…..
हमने कई बार कोशिश की कि इस लत से पीछा छुट जाये…. क्या क्या न किया….पर कुछ भी काम नहीं आया……. और तो और इस लत के कारण गुमशुदा व्यक्ति कि तलाश में हमारा विज्ञापन भी आ गया है….. हुआ यूँ कि इस लत के चक्कर में हम रात भर जागते रहें और दिन भर सोते……(दिन में स्पीड स्लो जो होती है)…… ये क्रम कई दिनों तक चलता रहा ….. .इस चक्कर में हम ५ दिनों तक अपने गाइड से भी नहीं मिल पाए और ना ही अपना मोबाइल चार्ज कर पाए….. गाइड मोबाइल ट्राई करते रहे और जब ५ दिनों तक मोबाइल नहीं मिला तो संस्थान कि वेबसाइट के खोया-पाया (lost & found) कॉलम में हमारा नाम लिखवा दिया गया…… मिलने पर गाइड से हमें इतनी डांट पड़ी कि हम बता नहीं सकते हैं…… और गाइड से कैसे बचे हैं, ये तो हम ही जानते हैं……
इस घटना के बाद तो हमने कान पकड़ लिया कि अब नेट पर नहीं बैठेंगे……पर ये दिल है कि मानता नहीं….. नेट की खुमारी क्या होती है दिमाग जानता ही नहीं……दो दिन तक तो कठोर व्रत चला……पर तीसरे दिन ही दिल कुलबुलाने लगा……उंगलियाँ थिरकने लगी…… दिमाग को मनाकर सोचा सिर्फ और सिर्फ ई मेल ही चेक करेंगे……क्या पता किसी रिसर्च पेपर पर कमेन्ट ना आ गया हो (जो हमने बड़ी मेहनत से इधर-उधर से कॉपी-पेस्ट कर के बनाये थे, अब असली रिसर्च आजकल कौन करता है)….. फिर लगा, क्या पता कोई जरूरी ई मेल ना आ गया हो (जबकि हमें पता है कि ज्यादातर spam e-mail से ही अकाउंट भरा होता है)….. किसी तरह मन को मनाया और आ गए फिर से नेट की बांहों में …. पर आप ही बताइए नेट पर क्या कोई सिर्फ ई मेल चेक करता है…..५ घंटे कैसे बीत गए पता ही नहीं चला……
होश तो तब आया, जब याद आया कि कल हमें एक जरुरी प्रोजेक्ट जमा करना हैं…….. मरता क्या ना करता, रात भर उल्लू की तरह जागकर किसी तरह कामचलाऊ रिपोर्ट तैयार की……… सुबह गाइड कि गाली सुनी वो अलग…….. गाइड की डांट ने हमें अन्दर तक झकझोर कर रख दिया था…..अब तो हद हो गई थी…..आखिर हमारी भी कोई इज्जत है कि नहीं….बस फिर क्या था सोशल नेटवर्किंग कि साईट खोली और लगे पासवर्ड चेंज करने…. कोई भी १५-२० नम्बर और लेटर कुंजियाँ दबाई और एक कागज पर लिखकर फ़ेंक दिया अलमारी के ऊपर…..सोचा चलो बला टली……पर ये बला इतनी आसानी से कहाँ टलने वाली थी…….
दो दिन तो आराम से बीते…….तीसरे दिन श्रुति आ गई और लगी बताने कि सोशल नेटवर्किंग साईट पर क्या क्या नौटंकी चल रही है……किसने आज कौन से कपडे पहने……कौन आज किसके साथ घूमने गया……कौन कितने दिन से नहीं नहाया हैं…….और ना जाने क्या-क्या……उसकी बातें सुनकर हमें लगा, पता नहीं हम शायद चौदहवीं सदी में रह रहे हैं….. वो अपनी बकवास किये जा रही थी, पर सुन कौन रहा था…. मन में तो बस यहीं चल रहा था, कब वो जाये और कब हम नेट के जादू में खो जाएँ……. जैसे ही वो गई, हमने दरवाजा बंद किया और मेज़ पर चढ़कर लगे खोजने पासवर्ड वाला कागज………बड़ी मुश्किल से हमें वो कागज मिला…….उसे पाकर हमें लगा मानो दुनिया भर की ख़ुशी मिल गई हो…….
फिर नेट पर वही २-३ साईट का चक्कर लगाते लगाते ६ घंटे कैसे बीते पता ही नहीं चला…….. आँखे तो तब खुली जब कल होने वाले टेस्ट की याद आई……. अब इतने कम समय में इतनी सारी पढ़ाई कैसे करेंगे ये सोचते ही सारा गुस्सा उस पासवर्ड वाले कागज़ पर निकाला और उसके पच्चासों टुकडे कर फिर से फ़ेंक दिया अलमारी के ऊपर……….
रात भर आँखे जलाते हुए पढाई की और किसी तरह d ग्रेड से ही संतुष्ट होना पड़ा……. d ग्रेड के गम में ३-४ दिन किसी तरह मन को मारते हुए बिना नेट के हमने निकाल ही लिए…….. पर जैसे ही पता चला कि गाइड अगले १० दिन के लिए किसी कोंफ्रेंस में चीन जा रहें हैं, हमारी तो मानो बांछे ही खिल गई और हमारा सोया हुआ नेट प्रेम फिर से जाग उठा…..और मन गुनगुनाने लगा…. चले गए थानेदार, रे अब डर काहे का……. चले गए थानेदार, रे अब डर काहे का…..
ख़ुशी में गुब्बारे की तरह फूलते हुए हमने गूगल क्रोम पर क्लिक किया और खोल ली अपनी फेवरेट साईट…. पर ये क्या, पासवर्ड तो हमने बदल दिया था………पर हम भी इतनी आसानी से हार मानने वालों में से थोड़ी थे, नेट के पुराने खिलाडी जो ठहरे……. हमने पासवर्ड गुम हो गया विकल्प पर क्लिक किया….. जवाब आया- आप अपना सिक्यूरिटी प्रश्न और जवाब टाइप करें…… पर हाय रे हमारी फूटी किस्मत……. हम रजिस्टर करते समय सिक्यूरिटी प्रश्न पर क्लिक करना तो भूल ही गए थे……..अब क्या करते…. .करना क्या था….. फिर से चढ़ गए मेज़ पर और लगे कागज़ के टुकडे जमा करने……. १-१ टुकड़ा हमें १-१ तोले सोने से भी कीमती लग रहा था…. बड़ी मुश्किल से १ घंटे की मेहनत के बाद जैसे-तैसे सारे टुकडे मिले…….. पेपर और गोंद लेकर लगे अब जोड़ने एक-एक टुकडे………. और इस तरह बड़ी मुश्किल से ४ घंटे की मेहनत के बाद हमें हमारा पासवर्ड वापस मिला…………
अब जैसे दिन भी नेट का और रातें भी नेट की…….. इन दस दिनों में हमने दिन और रात एक करके अपने संस्थान के फ्री नेट का भरपूर उपयोग किया….. अब इतनी फीस देते हैं तो हमारा भी तो कोई फ़र्ज़ है कि नहीं…….हमें लग रहा था अगर इसी तरह हम अपनी किताबों में रूचि दिखाते तो एक आध स्वर्ण पदक तो हाथ लग ही जाता……. पर कहते हैं ना किसी भी चीज़ की अति अच्छी नहीं होती…… .हमें भी पता चलना था और चल गया…… हमारी प्यारी-प्यारी कत्थई आँखे सूज कर अंगारे सी लाल हो गई और हम नेट तो क्या आईने में अपना चेहरा भी देखने लायक नहीं बचे….. बिना चश्में के अब कुछ भी दिखाई जो नहीं दे रहा था…… और हमारे कंधे और गले में इतना दर्द हो गया कि हमसे हिला भी नहीं जा रहा था…… .डॉक्टर ने कुत्ते का पट्टा बांधने दे दिया वो अलग……शर्म के मारे १५ दिन तक रूम से बाहर नहीं निकले और १५ दिन की छात्रवृत्ति से भी हाथ धो बैठे…… वो महिना कडकी में कैसे निकला है, ये हम ही जानते हैं……
किसी तरह महीने-डेढ़ महीने बिना नेट के निकाल ही लिए……. अब कुत्ते के पट्टे का भी तो ख्याल रखना था ना हमें……. और जैसे जैसे हालत सुधरी हम फिर से आ गए नेट सुंदरी की गोद में…….. और लगे करने फिर से नेट की जादुई दुनिया में विचरण…….. अब जैसे जैसे end term पास आने लगा हमारे दिमाग की घंटी बजने लगी …… टन टन टन टन …… हमारे दिल और दिमाग में रोज इस बात पर लड़ाई होने लगी कि अब तो पढाई करो…….पर ये नेट की लत ऐसे कैसे छूटती…… आखिर दिमाग में एक और धांसू आईडिया आ ही गया…… और हमने खोली free greetings की साईट…… अरे वहीँ 123greetings.com…….. और एक कार्ड पर पासवर्ड लिखकर अपने ही ई मेल पर भेज दिया ……अब आप सोच रहे होंगे ऐसे कैसे मैंने छुटकारा पा लिया??????? बहुत कम सोचते हैं आप लोग…… अरे भाई मैंने कार्ड पर पाने की तारीख तो दो महीने बाद की डाली थी ना………
इस तरह एक महिना तो अभी शांति से बीता है……. उम्मीद कीजिये कि अगला महिना भी शांति से निकल जाये…… अब एक महीने बाद फिर इससे छुटकारा पाने का उपाय सोचना पड़ेगा……. अब आप क्यों शांत बैठे है, आप भी मेरी कुछ मदद कीजिये ना……..
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