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कुछ दिनों पहले की ही बात है….मैं अपनी मित्र मुक्ता के घर गई थी …… अभी मैं बैठी ही थी कि एक १३-१४ साल की लड़की ट्रे में ठन्डे पानी का गिलास ले कर आ गई…..यूँ तो मैं पहले भी मुक्ता के घर जा चुकी हूँ, पर आज पहली बार इस लड़की से मेरा सामना हुआ था……उसके जाने के बाद जब मैंने पूछा कि यह कौन है, तो पता चला कि ये बिजली है, उनकी नई काम वाली है…….. इतना सुनते ही मेरे चेहरे के हाव-भाव बदलने लगे, और मुक्ता भांप गई कि मैं क्या सोच रही हूँ…..मेरे पूछने से पहले ही वो बोल पड़ी….. “मुझे पता है तुम मन में क्या सोच रही हो……वो क्या है ना अदिति, आजकल हमारी तबियत ठीक नहीं रहती है और सास-ससुर दोनों के अभी-अभी गुजरने के बाद इतने बड़े घर को संभालने वाला कोई चाहिए था……. दिनभर तो दूसरी काम वाली रहती ही है , पर शाम के बाद बच्चों को देखने हमें कोई ना कोई चाहिए था, इसलिए एजेंसी कि मदद से ये लड़की हमें मिल गई…..वरना यहाँ तो २४ घंटे के लिए काम वाली मिलना बहुत ही मुश्किल है”…….
एजेंसी का नाम सुनते ही हमारे दोनों कान खड़े हो गए…….और अपने स्वभाव के मुताबिक करने लगे पूछताछ……. और मुक्ता ने जो बताया, उसे सुनकर तो ये मन बहुत विचलित हुआ…….
क्या है ये मायाजाल
बड़े-बड़े शहरों में, जहाँ दम्पति कामकाजी होते हैं, उन्हें अक्सर बच्चों की देखभाल के लिए २४ घंटों के लिए काम वाली बाईयों की जरुरत होती है….. उनकी इन जरूरतों को पूरा करते है ये एजेंसी वाले…….इनका एक पूरा जाल ही बना हुआ होता है, जिसके द्वारा ये झारखण्ड, छत्तीसगढ़, बिहार, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि गरीब राज्यों के गांवों से ११-१२ साल की लड़कियां लाकर शहरों में काम पर लगाते हैं…… इनका कांट्रेक्ट ११ महीनों का होता है…… जिसके लिए ये आपसे एक साल के १५०००-१८००० रूपये लेते हैं और लड़की से उसके २-३ महीने की कमाई….. आपको लड़की को महीने के २५०० रुपये देने होते हैं, खाना-रहना साथ में ……. अगले साल अगर आपको जरुरत है तो आपको फिर से नया कांट्रेक्ट करना पड़ता है….
किसको फायदा
इसमे सबसे ज्यादा फायदे में है एजेंसी वाला, जो दोनों हाथों से कमा रहा है…….उसे कांट्रेक्ट से और लड़की से, दोनों से ही कमाई हो रही है……लड़की के लिए भी ये फायदेमंद होता है……इसी बहाने वो व्यवहार कुशल हो जाती है…… नई-नई चीज़े सीखती है…..पढ़े-लिखे लोगों के बीच रहकर उसके रहन-सहन और व्यवहार में सुधार आता है……ज्यादातर देखा गया है कि इन लड़कियों की शादी बाद में उनके समाज के आर्थिक रूप से संपन्न लोगों से होती है…….
नुकसान किसका
बिजली जैसी कई लड़कियां हैं जो अपने परिवार का पेट भरने के लिए अपना बचपन कुर्बान कर रहीं हैं…….खेलने-कूदने की इस उम्र में रोटी-रोज़ी के चक्कर में पड़ गई हैं…….परिवार की आर्थिक तंगी के कारण मजबूर हो कर बाल श्रम करने के लिए मजबूर हैं…..और अपने सपनों का गला घोंटकर अंधकारमय जीवन जीने के लिए भी…….. पर इस विशेष प्रकार के बाल श्रम का एक और अलग पहलु है……अगर लड़की को अच्छा घर मिल गया तो ठीक है, नहीं तो उसका तो भगवान ही मालिक है……उम्र में छोटे होने के कारण ऐसी लड़कियों का मानसिक शोषण आम बात है…….घर से हजारों किलोमीटर दूर, अनजानों के बीच, लड़ती रहती हैं ये अपने आप से…… उसका दुःख बांटने कोई भी पास नहीं होता है ……कई मामलों में शारीरिक शोषण से भी इनकार नहीं किया जा सकता है……फिर भी परिवार की खुशियों की खातिर सब कुछ सहती रहती है, ये लड़कियां चुपचाप…….
बिजली की कहानी
बिजली ने हमें अपनी जो कहानी बताई, वो कुछ इस तरह थी…….बिजली के घर में माँ-बाप के अलावा ४ छोटे भाई-बहन और हैं…..पिता मजदूरी करते हैं और माँ घर-घर झाड़ू-बर्तन……..पर दोनों मिलकर भी इतना नहीं कमा पाते कि ७ लोगों का ये परिवार रोज पेट भर खाना खा सके…….गरीबी ने कभी बिजली को स्कूल का मुँह देखने नहीं दिया और घर में सबसे बड़ी होने के कारण ८-९ साल की उम्र से ही माँ का हाथ बँटाने लगी….ज्यों ही बिजली ११-१२ साल हुई, एक दिन राजू नाम का एक व्यक्ति, जो की गाँव का ही है पर अब शहर में रहता है, आया…….और उसने गरीबी का हवाला और पैसों का ख्वाब दिखा कर माँ-बाप को तैयार कर लिया कि वो बिजली को उसके साथ शहर भेज दे….पहले तो माँ-बाप तैयार ना थे, पर अपनी गरीबी कि हालत देखकर और गाँव से गई अन्य लड़कियों की सुधरती हालत देखकर तैयार हो गए…….और आ गई बिजली अपने गाँव से दूर अनजान लोगों के बीच…….
पहले तो कुछ दिन उसे पास के शहर में ही काम दिया गया, और कुछ महीनों बाद वो घर से हजारों किलोमीटर दूर दिल्ली भेज दी गई…. उसकी किस्मत से दिल्ली में उसे पहला ही घर बहुत अच्छा मिला……मालकिन बहुत अच्छी थी और बड़े प्यार से रखती थी……३ साल तक उसी मालकिन के यहाँ काम किया और ३-४ महीने पहले ही उस मालकिन की भाभी यानि मुक्ता के घर आ गई…..
बिजली के ही शब्दों में……..ये दीदी भी बहुत अच्छी है….. हमारा ख्याल रखती हैं…..हमें अच्छी -अच्छी बात सिखाती हैं, कैसे रहना है, कैसे बात करना है…….इन्होने हमें पढना-लिखना भी सिखाया………और तो और हम अब कई तरह का खाना भी बना लेते हैं……..इनके दोनों बच्चे भी बहुत प्यारे है और हमें बहुत प्यार करते हैं……..अपने गांव जाते है तो लोग हमें बहुत इज्ज़त देते हैं …..पर………पर अपना घर तो अपना होता है ना, चाहे वो टूटा-फूटा क्यों ना हो…….. यहाँ टी वी, फ्रीज़, कूलर और ऐशों-आराम की सभी चीज़े हैं, पर घर में बिना पंखे के भी हमें ज्यादा अच्छी नींद आती थी…….मन में कभी डर नहीं रहता था…….
बिजली के पिता की जुबानी
क्या बताएं मैडम जी, हम तो बिजली के कर्जदार है……भगवान ऐसी बेटी हर माँ-बाप को दे……आज इसके कारण ही हमारे दो बच्चे स्कूल जा पा रहे हैं…….बिजली चाहती है कि वो भी पढ़-लिखकर भैयाजी और दीदी की तरह बड़े आदमी बने……उन्हें उसकी तरह काम ना करना पड़े……हम तो भैयाजी और दीदी के भी शुक्रगुजार हैं, जो बिजली को बड़े प्यार से घर के सदस्य की तरह रखते हैं…….बिजली यहाँ से बहुत अच्छी बातें सीख रही है…..जब ये वापस आएगी तो हमें इसकी शादी की चिंता नहीं रहेगी…… एक से एक अच्छे लड़के आयेंगे बिजली को ब्याहने……बिजली बताती है कि उसे यहाँ कोई तकलीफ नहीं है…….
इतना कहते ही आँखों में पानी आ जाता है और दिल का दर्द जुबान पर आ जाता है…….हमारा भी मन कहाँ कहता है कि बिजली काम करें, पर क्या करें गरीबी चीज़ ही ऐसी होती है, आदमी मजबूर हो जाता है……बिजली को दूर भेज कर हम भी कहाँ चैन से सोते है…….हर समय बस यहीं चिता लगी रहती है कि बिजली ठीक तो है ना…….ये गरीबी भी कमबख्त ऐसी चीज़ होती है कि हमें बेटी की इज्ज़त भी दांव पर लगाना पड़ता है…..
हमारी सोच
मुक्ता ने बताया कि उन्हें भी अच्छा नहीं लगता कि इतनी छोटी लड़की से काम करा रहे हैं……पर क्या करें हम नहीं रखेंगे तो कोई और रख लेगा……क्या पता फिर उसे कैसा घर मिले…….यहाँ ये सोचकर तो अच्छा लगता है कि कम से कम अच्छे लोगों के बीच है…. पिछली बार बिजली के पिताजी उससे मिलने आये थे तब हमने उनसे बात करके इस बात के लिए राजी कर लिया कि अब हमारा कांट्रेक्ट सीधा हो ताकि जो भी हम पैसा दे रहे हैं वो सीधा बिजली के घर वालों को मिले ना कि एजेंसी को…. पैसा तो हमें देना ही है, तो क्यों ना वो सही हाथों में जाये…….
दिल को चुभते प्रश्न
आज भी रह-रह कर मासूम बिजली का चेहरा आँखों के सामने आ जाता है……अभी बचपन गया नहीं, पर उम्र के पहले ही वो इतनी समझदार हो गई कि परिवार की खुशियों कि खातिर अपनी ही खुशियों का गला घोंट दिया……..ये पूरी कहानी सुनकर दिलो-दिमाग में ढेर सारे प्रश्न घूमने लगे …….क्या माँ-बाप गरीबी के हाथों इतने मजबूर हो गए कि अपनी बेटी की इज्जत को भी दांव पर लगाने से नहीं डरते …. कुछ पैसों की खातिर अपनी बेटी को अपने से हजारों किलोमीटर दूर अनजान लोगों के बीच भेजने में भी नहीं डर रहे, जहाँ बेटी है बिलकुल अकेली और अनजान……..वो बेटी जिसने कभी बाहर की दुनिया में कदम भी नहीं रखा, अपने परिवार के भूखे पेट की खातिर रोज घुटते हुए जी रही है…….. क्या गरीबी सही में इतनी निर्दयी होती है जो इन्सान से कुछ भी कराती है……
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