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वाह रे भारतीय न्याय व्यवस्था, २५ साल बाद फैसला सुनाया और सजा क्या दी ….मुख्य आरोपी फरार…….अन्य ८ आरोपियों को २५००० से अधिक लोगों की जान लेने की सजा सिर्फ २ साल कैद और कुछ लाख रुपये……और तो और सजा का ऎलान होने के बाद ही सभी दोषियों को 25-25 हजार रूपए के मुचलके पर जमानत भी दे दी…..धन्य है आप………. शायद इसी लिए मेरा भारत महान हैं………अगर आपके पास पैसे हैं, तो आप मानव जीवन, स्वास्थ्य और पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कीजिये …….जो चाहे अपराध कीजिये……. जमानत तो मिल ही जाएगी….नहीं तो बाद में बीमारी का बहाना बनाकर बढ़िया अस्पताल के ए सी रूम में सजा काटिए……. और ज्यादा पैसे हैं तो विदेश में सेटल हो जाइये, भारत का कानून आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है……..
भोपाल गैस कांड का फैसला सुनकर आज जनता का तो कानून से विश्वास ही उठ गया ……..भोपाल गैस कांड हों, रुचिका मामला हो, रिजवानुर हत्याकांड हो या आरुषी हत्याकांड, फैसले में होती देरी और फिर मिलने वाली थोड़ी सी औपचारिक सजा ने कानून के ऊपर से जनता का विश्वास ही हिला दिया है………. क्या आज के फैसले ने पीड़ितों और उनके परिवार वालों के सीने में २५ सालों से धधक रही आग को ठंडा किया या और भड़का दिया ……..
भोपाल के लोग आज भी वो २-३ दिसंबर १९८४ की रात नहीं भूल पाते हैं……….हर तरफ बस धुआ ही धुआं था और थी लोगों की चीख-पुकार ……वो ३ दिसंबर के शुरूआती घंटे जैसे काल के बादल बनकर छाये थे भोपाल के आकाश में, जिसने लील ली हजारों जानें……और कर गए कई लाखों लोगों को हमेशा के लिए अपंग और बीमार………..
क्या हुआ था उस रात ……….उस रात, जब सारा भोपाल शहर नींद के आगोश में खोया हुआ था, भोपाल शहर के बीच स्थित यूनियन कार्बाइड कारखाने से मिथाइल आइसोसाइनेट (मिक) नामक जहरीली और प्राण घातक गैस के टैंक फट गए………जिससे ४० टन गैस रिसी और पुरे भोपाल में मौत का तांडव फैल गया……. जिसने हजारों सोते हुए लोगो को फिर उठने का मौका नहीं दिया…..और जो उठे उनमें से भी लाखों लोग अभी भी अपनी जिंदगी से जंग लड़ रहें है……..उस रात से लेकर अब तक २५ हजार से ज्यादा लोग उस हादसे का शिकार हो कर मौत की नींद सो चुके है, जबकि ५ लाख से ज्यादा लोग विकलांगता का शिकार होकर अपनी मौत का इंतजार कर रहे हैं……..
मानव इतिहास की इस सबसे क्रूरतम् औद्योगिक दुर्घटना को गुजरे हुए २५ साल हो गए……पीड़ित सजा का इंतजार कर रहे थे….. कईयों का इंतजार तो उनकी जिंदगी से भी लम्बा हो गया……… पीड़ितों को भीख के बराबर मुआवजा भी मिला, जो अब तक बँट रहा हैं……….क्या भारतीयों की जान की कीमत इतनी कम है……..
२५ साल बाद आज फैसला आया……..पर ऐसा लग रहा है ये न्याय नहीं बल्कि पीड़ितों के साथ क्रूर मजाक है………..इस कांड का मुख्य अपराधी वारेन एंडरसन आज भी स्वतंत्र घूम रहा है, क्योंकि वो एक अमेरिकी नागरिक है और एक बहुराष्टीय कंपनी का मालिक भी………..अन्य ८ अपराधियों को भी बस औपचारिक सजा दी गई ……. यूनियन कारबाइड की अधिग्रहणकर्ता डाऊ कैमिकल नैतिक जिम्मेदारी लेने की बजाय इस त्रासदी से यह कहकर पल्ला झाड़ रही है कि उस समय यह कंपनी उसके अधिकार में नहीं थी, जबकि उसने अमेरिका में एस्बेस्टस संपर्क मामले में कारबाइड की देनदारी स्वीकार की है…….यानि कि अमेरिका और भारत के लिए उसका नजरिया अलग-अलग है…….या हमारी सरकार ही उन्हें छुट दे रही है…….
आज के फैसले से पीड़ितों का दर्द तो कम नहीं हुआ बल्कि नासूर बन गया है ……..आज के फैसले ने जनता के मन में कई सवाल पैदा कर दिए हैं……..क्या हमारी जाँच एजेंसियां सिर्फ नाम के लिए रह गई हैं और वो अपराधियों के खिलाफ सबूत भी नहीं जुटा पाती हैं……..क्या आम आदमी के लिए भारत में इन्साफ पाना सचमुच इतना मुश्किल है……….क्या कानून सचमुच में अँधा है या पैसे वालों के हाथ की कठपुतली……..
मै मानती हूँ की कानून की अपनी भी कुछ सीमाएं होती हैं, पर ये सीमाएं तो बनाते हम ही हैं…….. भारत में बढ़ते औद्योगिकीकरण को देखते हुए ये जरुरी है कि इस तरह के मामलों को गंभीरता से लिया जाएँ……. इस तरह के कानून में बदलाव आवश्यक है….और, हमें और अधिक सख्त कानून की आवश्यकता है…. ताकि भविष्य में सुरक्षा नियमों और आम जनता की जिंदगी के साथ इस तरह का खिलवाड़ ना हो और इस तरह की घटनाओं की पुनरावृति ना हो……साथ ही व्यावसायिक घरानों द्वारा इस तरह की घटनाओ की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उनकी तरफ से जो संभव है, वो हर मदद पीड़ितों को पहुंचानी चाहिए (under corporate social responsibility)……..
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