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अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस-आओ इस बार कुछ नया करें (लेख)

मुझे भी कुछ कहना है
मुझे भी कुछ कहना है
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1लीजिये हर साल की तरह एक और पर्यावरण दिवस आ गया…….हर साल की तरह इस साल भी हर जगह बस २४ घंटों के लिए पर्यावरण और उसकी सुरक्षा की बात की जाएगी……..रात बीतने के साथ ही पर्यावरण दिवस भी बीत जायेगा और लोगों को दूसरी सुबह याद भी नहीं रहेगा कि कल क्या था………कहीं भाषण बोले जायेंगे……… कही कवितायेँ कहीं जाएँगी……… कहीं चित्र उकेरे जायेंगे……….कहीं वृक्ष लगाते हुए फोटो खिंचवाए जायेंगे………और पता नहीं क्या-क्या किया जायेगा….. पर असल में कुछ नहीं किया जायेगा……. क्या सिर्फ बातें करने से ही हमारा पर्यावरण सुधर जायेगा?…… क्या साल के ८७६० घंटों में से सिर्फ २४ घंटे हमारा अपने पर्यावरण के बारे में सोचना काफी है?……..क्या हम वास्तव में पर्यावरण संरक्षण के प्रति गंभीर हैं?………..यदि हाँ तो साल में एक दिन इस बारे में सोचकर हम साल भर क्यों चुप बैठ जाते हैं?………वातावरण को सही और सुंदर रखना हमारा कर्त्तव्य है…….तो चलिए इस बार कुछ अलग करते है ताकि आयोजन पुरे वर्ष भर चलते रहे और हमारे लिए प्रत्येक दिन पर्यावरण दिवस हो………

4हमारा पर्यावरण मिट्टी, जल, वायु, अग्नि और आकाश से बना है……. पर इस पर्यावरण के सबसे महत्वपूर्ण अंग हैं हम, स्वयं इंसान…… आज विकास का काला चश्मा पहनकर यहीं इंसान इस पर्यावरण में जहर घोल रहा है…… कुल्हाडियों से अंधाधुंध जंगल के जंगल कट रहे है…..वन्य जीवों का, सिर्फ कुछ पैसों के लालच में, शिकार कर रहा है ये इंसान………बड़े बड़े उद्योगों की ऊंची चिमनियों, मोटर गाड़ियों से निकलते धुए शहरों के वातावरण में दिन-प्रतिदिन जहर घोल रहे हैं……… और तो और इन बड़े बड़े उद्योगों से निकल रहे गंदे-जहरीले पानी से हमारी सुंदर-स्वच्छ नदियों और हरी-नीली झीलों को काला-पीला बना दिया जा रहा है………..और बाद में इन्ही नदियों को स्वच्छ करने अरबों रुपये पानी में बहाए जा रहे है………ये तो वहीँ बात हुई कि अगर काम नहीं है तो अच्छे-खासे पायजामे को फाडिये और फिर सिलाने बैठ जाइये…..

कब होता है पर्यावरण असंतुलित?
2हमारे आस पास के प्रकृति की अपनी एक व्यवस्था है, जो स्वयं में पूर्ण है और प्रकृति के सारे कार्य एक सुनिश्चित व्यवस्था के अतंर्गत होते रहते हैं…….. यदि मनुष्य प्रकृति के नियमों का पालन करता है तो उसे पृथ्वी पर जीवन-यापन की मूलभूत आवश्यकताओं में कोई कमी नहीं रहती है……… पर आज मनुष्य आधुनिकता की चकाचौंध में अंधा होकर अपने संकीर्ण स्वार्थ के लिए प्रकृति का अति दोहन करता जा रहा है, जिसके कारण प्रकृति का संतुलन डगमगाने लगा है……परिणामतः बाढ़, सूखा, प्रदुषण, महामारी, दिनों दिन बढती गर्मी, जल की कमी जैसी समस्याये पैदा होने लगी हैं…………


पर्यावरण असंतुलन के दुष्परिणाम

  • पर्यावरण असंतुलन के कारण मनुष्य तथा अन्य वन जीवों को अपने जीवन के प्रति संकट का सामना करना पड़ रहा है………बहुत से जीव-जंतु हमें बिल्कुल अनुपयोगी और हानिकारक प्रतीत होते हैं, लेकिन वे खाद्य श्रृंखला की प्रमुख कड़ी होते हैं और उनका पर्यावरण के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान होता है…………पर्यावरण में आये इस असंतुलन के कारण इस पृथ्वी पर कई प्रकार के अनोखे एवं विशेष नस्ल की तितली, वन्य जीव, पौधे गायब हो चुके हैं……..
  • प्रदूषित पर्यावरण का प्रभाव पेड़ पौधे एवं फसलों पर भी पड़ा है………कृषि योग्य भूमि लगातार कम हो रही है……..साथ ही समय के अनुसार वर्षा न होने पर फसलों का चक्रीकरण भी प्रभावित हुआ है।
  • प्रकृति के नियमों का पालन ना किये जाने से वनस्पति एवं जमीन के भीतर के पानी पर भी इसका बुरा प्रभाव देखा जा रहा है…… जमीन के अन्दर पानी के श्रोत कम हो गए हैं और लोगों को पर्याप्त पीने का पानी नहीं मिल पा रहा है………..
  • सिमटते जंगल और शिकारियों पर कोई अंकुश नहीं होने से राष्ट्रीय पशु और जंगल के राजा बाघ के साथ-साथ अन्य कई जानवरों की संख्या लगातार कम होती जा रही है, जो चिंता का सबब है……. सन् 2002 के सर्वेक्षण में बाघों की संख्या 3500 आंकी गई थी लेकिन ताज़ा सर्वेक्षण के अनुसार भारत में केवल 1411 बाघ बचे हैं………यानि की आधे से भी कम……..
  • समुद्र तटों पर स्थित महानगरों को पर्यावरण असंतुलन के कारण अब भयंकर स्थिति का सामना करना पड़ रहा है…… समुद्र के पानी का स्तर सामान्य से ज्यादा होने के कारण भयंकर तूफान से इन महानगरों के डूब जाने का खतरा बढ़ता जा रहा है………..
  • आज दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता जा रहा है, जिससे ग्लोबल वॉर्मिग का संकट और भी गहराता जा रहा है……

    कैसे करें पर्यावरण कि रक्षा
    3पर्यावरण के नुक़सान से जो क्षति हो रही है वह हाल के दशक के मानव समाज की कई उपलब्धियों को बौना बना रही है……….अपने पर्यावरण की सुरक्षा करना आज की सबसे बड़ी जरुरत है……..लेकिन पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने में जब तक हरेक इंसान इसमें अपना योगदान नहीं करेगा, ये मुहिम सफल नहीं हो सकती……… हम भी कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर अपने आस-पास के पर्यावरण को साफ-सुथरा और प्रदूषण रहित रखने में योगदान कर सकते हैं………
  • पानी व्यर्थ ना बहायें
  • कचरे को ठीक जगह पर फेंके
  • बिजली को व्यर्थ खर्च ना करें
  • जंगलों को न काटे।
  • कार्बन जैसी नशीली गैसों का उत्पादन बंद करे।
  • उपयोग किए गए पानी का चक्रीकरण करें।
  • ज़मीन के पानी को फिर से स्तर पर लाने के लिए वर्षा के पानी को सहेजने की व्यवस्था करें
  • ध्वनि प्रदूषण को सीमित करें
  • वृक्षारोपण करें

    आप सोच रहें होंगे क्या इन छोटी-छोटी बातों से हमारा पर्यावरण सुरक्षित रह पायेगा…….जी हाँ ये छोटी छोटी बातें ही हैं जिन्हें ध्यान में रख कर हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते है…..पर्यावरण सिर्फ चर्चा करने का विषय नहीं है, बल्कि जरुरत है कि हम इसे अपने आसपास महसूस करें और इसकी सुरक्षा का प्रण लें, सिर्फ २४ घंटे के लिए नहीं बल्कि हर चौबीसों घंटे के लिए………….यही समय है जब हम सब को एकत्रित होकर हमारे पर्यावरण को सुरक्षित रखने तथा उनका विकास करने की कोशिश करनी चाहिए…….नहीं तो पृथ्वी पर भी अन्य ग्रहों की तरह जीवन नामुमकिन हो जाएगा……

    आओ कुछ नया करें

    5पर्यावरण संतुलन के लिए जरुरी है कि हम वृक्षारोपण एवं वन्य जीव संरक्षण का महत्व समझे……….वृक्ष खाद्य श्रृंखला की प्रथम कड़ी हैं, अतः पर्यावरण के संरक्षण में वृक्षों का सबसे अधिक महत्व है और इनकी सुरक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है…….. क्यों ना हम अपने जन्म दिन पर, बच्चों के जन्मदिन पर, विवाह दिवस पर तथा अन्य मांगलिक अवसरों पर स्मृति के रूप में वृक्ष लगाये………सिर्फ वृक्ष ना लगाये अपितु उनकी देखभाल भी करें…….. पर्यावरण संतुलन के लिए आज इस स्वस्थ परंपरा को आरंभ करने की महती आवश्यकता है……. समाज को इस दिशा में सकारात्मक पहल कर इस प्रथा को स्थायित्व प्रदान करने का प्रयास करना चाहिए………..


    जरुर देखे
    नीचे, भारत सरकार की “भारत विकास प्रवेशद्वार” का लिंक दिया गया है, जिस पर क्लिक करके आप पर्यावरण सुरक्षा के छोटे-छोटे सुझाव पा सकते हैं……….यहाँ, पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं इसकी रोचक जानकारी दी गई है……..एक बार जरुर देखिये………

     


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