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पूछती हूँ सवाल पर मिलता नहीं कोई हल (कविता)

मुझे भी कुछ कहना है
मुझे भी कुछ कहना है
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क्या थे, क्या हैं, और क्या हो जायेंगे कल?
पूछती हूँ सवाल पर मिलता नहीं कोई हल


atyachar
हर तरफ है हिंसा, द्वेष और अत्याचार
भूल बैठे हैं सब क्या होता है प्यार
क्या ख़त्म ना होगा कभी जातीयता का ये दंगल?
पूछती हूँ सवाल पर मिलता नहीं कोई हल


garibi
मंहगाई, गरीबी और भूख से जनता है बेहाल
जल, बिजली, सड़क से हुआ सब का जीवन बदहाल
कब छटेंगे आम जीवन से अव्यवस्था के ये बादल
पूछती हूँ सवाल पर मिलता नहीं कोई हल


bhrashtachar
भष्ट है नेता, भ्रष्ट है अफसर, बढ़ रहा है भ्रष्टाचार
देख देश की दुर्दशा नहीं होते फिर भी शर्मसार
और कब तक करेंगे वो इस देश को घायल
पूछती हूँ सवाल पर मिलता नहीं कोई हल


bhrun hatya
भभक रही है चारो तरफ से दहेज़ की ज्वाला
भ्रूण-हत्या और बलात्कार से झुलस रही हर बाला
कब तक तड़प के ऐसे जीयेगी नारी यूँ हर पल
पूछती हूँ सवाल पर मिलता नहीं कोई हल


bomb
बस्ती उजड़ी, गांव उजड़े, उजड़ रहे हैं शहर
और कब तक चलेगा ये दुश्मनी का सफ़र?
उठाते हम ही क्यों नहीं अब कदम कोई अटल?
पूछती हूँ सवाल पर मिलता नहीं कोई हल


question
पूछती हूँ सवाल पर मिलता नहीं कोई हल

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