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साड़ी पर बवाल, तलाक का सवाल-२, एक नारी का जवाब (लेख)

मुझे भी कुछ कहना है
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मैंने अभी अभी अरविन्द जी की पोस्ट साड़ी पर बवाल, तलाक का सवाल पढ़ी. मै उनके विचारों से पूरी तरह सहमत हूँ, पर उनके इस पोस्ट पर कुछ लोगों के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं पढ़कर दुःख भी हुआ. आखिर हम कितने भी आधुनिक क्यों न बन जाएँ, औरतो के प्रति हमारा नजरिया नहीं बदल सकता. जहाँ तक यहाँ बात हो रही थी की साडी पहनने के लिए मजबूर करना तलाक पाने के लिए सही वजह है या नहीं. और अधिकांश लोग इस बात पर चर्चा करने लगे कि औरतों को क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं. सबसे पहले मै पोस्ट में पूछे गए सवाल का जवाब देना चाहती हूँ कि सिर्फ साडी पहनने के लिए मजबूर करना तलाक कि वजह नहीं बन सकता.

    अब आगे मै एक नारी होने के नाते बाकी लोगों को जवाब देना चाहती हूँ. कई सारे लोगों ने संस्कृति का हवाला दिया, पर क्या संस्कृति की रक्षा करना सिर्फ महिलाओं का काम हैं? और क्या अपने आराम के लिए सारे नियमों को बदलना आदमी का जन्मसिद्ध अधिकार है? अगर आप हमारी संस्कृति कि बात करते हैं तो उसके मुताबिक आदमियों को धोती-कुर्ता पहनना चाहिए. अब आप ही मुझे बताइए आपके जान पहचान में कितने आदमी हैं जो विशेष मौकों पर ही सही धोती-कुर्ता (कुर्ता-पायजामा नहीं) पहनते हैं? सिर्फ विशेष मौकों पर ही, रोज कि बात तो छोडिये. अच्छा ये बताइए आपमें से कितने लोगों को धोती बांधनी और संभालनी आती है? जब आप अपनी संस्कृति कि रक्षा विशेष मौकों पर भी नहीं कर सकते तो फिर औरतों से क्यों उम्मीद करते हैं कि वो रोज सिर्फ और सिर्फ साड़ी ही पहने.

    किसी को क्या पहनना है या क्या नहीं इसका निर्णय लेने का हक सिर्फ उसी को होना चाहिए, चाहे वो एक औरत हो या एक आदमी. आज जहाँ नारी पुरुषों से कंधे से कन्धा मिलकर चल रही हैं. वहीँ वो अपने घर के दायित्वों का भी पूर्ण निर्वाह कर रही हैं. घर से बाहर जाकर काम करना, घर आकर घर के काम करना, बच्चे की देखभाल करना और रिश्तेदारी निभाना आसान काम नहीं होता है. और इस भागदौड़ भरी जिंदगी में आप उससे उम्मीद करते हैं कि रोज वह ५.५ मीटर कि वो साडी लपेट कर रखे तो यह मुमकिन नहीं है. विशेष मौकों पर तो वह खुद ही साडी पहन लेती है. यहाँ बात विशेष मौकों कि नहीं बल्कि रोज की हो रही हैं (कृपया समाचार कि स्कैन कॉपी पढ़ लें). साड़ी नहीं का मतलब सिर्फ जींस पेंट नहीं होता है. क्या आपके घर में औरतें सलवार कुर्ता नहीं पहनती हैं. और अगर जींस पेंट पहन भी रही हैं तो इसमे बुराई क्या है.


    क्या आपको किरण बेदी जी को पेंट शर्ट पहने देखकर बुरा लगता है? नहीं ना. देखिये, ये तो देखने वाले कि नज़रों में होता है वो किस नजरिये से देख रहा है. सलवार कुर्ते और जींस पेंट पहनने में बुराई क्या है? यहाँ मैं एक बात और पूछना चाहूंगी आप लोग ही बताइए कि किस चीज को पहन कर स्त्री ज्यादा ढकी होती है सलवार कुर्ता, जींस पेंट या साड़ी में. आपको जवाब अपने आप मिल जायेगा. कोई भी चीज बुरी नहीं होती. ये तो उपयोग करने वाले पर निर्भर करता है कि वो उसका उपयोग कैसे करता है. अब डंडे का उपयोग कोई सहारा लेने के लिए भी करता है और कोई किसी का सिर फोड़ने में भी, तो डंडा तो बुरा नहीं हो गया ना.


    आप सभी को लग रहा होगा कि बिलकुल मेमसाहब है ये तो (जैसा की कुछ लोगो ने साड़ी की खिलाफत करने वालों के लिए लिखा), पर मैं साडी के खिलाफ नहीं हूँ. ना ही साड़ी पहनना मुझे बुरा लगता है. साड़ी में ही तो नारी सबसे अच्छी लगती है. पर यहाँ बात हो रही है आराम की और बात हो रही है कि कोई दूसरा क्यों ये निर्णय ले कि नारी को क्या पहनना चाहिए या क्या नहीं. कम से कम ये अधिकार तो नारी को होना ही चाहिए.


    संस्कृति के रक्षकों की प्रतिक्रियाओं का विशेष इंतजार रहेगा………..


    साथ ही आप सभी के प्यार का…………


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