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ना बांटो इस देश को (कविता)

मुझे भी कुछ कहना है
मुझे भी कुछ कहना है
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तेलंगाना की घोषणा के साथ ही देश में नए राज्य बनाने की होड़ सी लग गई है. नए राज्य के पीछे सबके अपने अपने तर्क है. हर कोई भाषा, सामाजिक- आर्थिक विकास, सरकार की बेरुखी आदि के नाम पर नए राज्य की वकालत करते नजर आ रहे हैं. पर क्या सिर्फ राज्यों को तोड़कर नए राज्य बनाने से ही विकास की गति तेज हो जाएगी? टुकड़ों में बंटकर कब किसने तरक्की की है? चाहे वो पाकिस्तान हो या बांग्लादेश या हो झारखण्ड, उत्तराँचल या छत्तीसगढ़, इन सब की हालत किसी से छुपी नहीं है. भारत तो एक विशाल देश है, क्या अब विकास के लिए इसके टुकड़े करना जरुरी है?

ना बांटो इस देश को हर एक भाषा के नाम पर
क्यूँ तोड़ते हो लोगों को विकास की आशा के नाम पर

सोचो हमने क्या पा लिया आज हो कर के उन्तीस
थे खुश तब भी जब थे चौदह या थे हम इक्कीस
आज आया तेलंगाना, कल गोरखालैंड भी आएगा
फिर विदर्भ, पूर्वांचल और ना जाने किसका नंबर आएगा

सोचो क्या हुआ है विकास झारखण्ड में बिहार से फूटकर
या हुई है तरक्की उत्तराखंड या छत्तीसगढ़ का टूटकर
टुकड़े कर दो कितने देश फिर भी तरक्की नहीं कर पायेगा
जब तक नहीं जागेगी जनता, एक अच्छा नेता नहीं चुना जायेगा

ये तो अच्छा है नेता को है सिर्फ मुख्यमंन्त्री पद का चस्का
नहीं लगा है किसी को प्रधानमंत्री की कुर्सी का मस्का
नहीं तो कल फिर कोई नेता आमरण अनशन पे बैठ जायेगा
अलग देश की मांग लेकर इतिहास फिर से दुहराया जायेगा

वो भी दूर नहीं जब दिन एक ऐसा भी आएगा
टुकड़े करने के लिए ना कोई राज्य रह जायेगा
पर नेताओं के मन में तब भी चैन कहाँ से आएगा
हर जिले को प्रान्त बना दो ये मांग उठाया जायेगा

ना सेंको राजनीति की रोटियां जनता के नाम पर
क्यूँ तोड़ते हो लोगों को विकास की आशा के नाम पर

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